गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

Bewafa shayri

Aaj hum unhe bewafa bata kar aaye hain,
unke khaton ko pani mein bahakar aaye hain,
koi nikal kar pad na le unhe,
is liye pani mein bhi aag laga kar aaye hain…
kanch tute to nishan reh jaata hai,
dil tute to arman reh jaata hai,
laga deta hai waqt marham is dil par,
phir bhi umr bhar ek zakhm reh jaata hai
Dosti mein imtehan liya nahi karte,
Dost to intezzar karwaaya nahi karte,
Aisi bhi kya khata ho gayi,
ki roz yaad karne waale ek pal bhi yaad kiya nahi karte…….
Kash yah dil shisha ka bana hota chot lagti to bashak fanash hota per sunte jab wo awaz iski tutna ki tab unhe bhi apne gunnah ka ehsaas hota
Aye mohabbat tere anjaam pe rona aaya
Jaane kyon aaj tere naam pe rona aaya
Yun to har sham umedon mein guzar jaati hai
Aaj kuch baat hai jo sham pe rona aaya 


Nadaani mein hum kisse apna samajh beithe
jo dikhaaya uss bewafa ne sapna hum haqeeqat samajh beithe
dekho aaj chod diya hamein usne ek gair ke liye
jisse hum apna humsafar samajh beithe

Khuda ne kaash mohabbat banaayi na hoti
toh aaj iss tarah hamare pyar ki rusvaayi na hoti
kaash unke dil mein zara si wafa hoti
toh iss tarah mere saath bewafaayi na hoti



Tum bin zindagi suni si lagti hai,
Har pal adhuri si lagti hai…
Ab to in saanson ko apni saanson se jodde,
Warna zindagi kuch pal ki mehmaan lagti hai






शनिवार, 7 जनवरी 2012

sachchi bhoot ki kahani


                                       भूत (सत्य कथा)  Amar sharma 9006357621
 हमारे गाँव से लगभग आधा किलोमीटर पर एक बहुत बड़ा बगीचा आम  का  है जिसको हमारे गाँव वाले    जा बून   नाम से पुकारते हैं। यह लगभग  दो  बिगहा  में फैला हुआ है। इस बगीचे में आम और महुआ के पेड़ों की अधिकता है। बहुत सारे पेड़ों के कट या गिर जाने के कारण आज यह  अपना पहले वाला अस्तित्व खो चुकी है पर आज भी कमजोर दिलवाले व्यक्ति दोपहर या दिन डूबने के बाद इस बगीचे  की ओर जाने की बात तो दूर इस का नाम उनके जेहन में आते ही उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। आखिर क्यों? उस  में ऐसा बगीचे क्या है ? जी हाँ, तो आज से तीस-बत्तीस साल पहले यह बगीचे बहुत ही घनी और भयावह हुआ करती थी। दोपहर के समय भी इस बगीचे में अंधेरा और भूतों का खौफ छाया रहता था। लोग आम तोड़ने या महुआ बीनने के लिए दल बाँधकर ही इस  में जाया बगीचे करते थे। हाँ इक्के-दुक्के हिम्मती लोग जिन्हे हनुमानजी पर पूरा भरोसा हुआ करता था वे कभी-कभी अकेले भी जाते थे। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि रात को भूत-प्रेतों को यहाँ चिक्का-कबड्डी खेलते हुए देखा जा सकता था। अगर कोई व्यक्ति भूला-भटककर इस बारी के आस-पास भी पहुँच गया तो ये भूत उसे भी पकड़कर अपने साथ खेलने के लिए मजबूर करते थे और ना-नुकुर करने पर जमकर धुनाई भी कर देते थे। और उस व्यक्ति को तब छोड़ते थे जब वह कबूल करता था कि वह भाँग-गाँजा आदि उन लोगों को भेंट करेगा। तो आइए उस बगीचे की एक सच्ची घटना सुनाकर अपने रोंगटे खड़े कर लेता हूँ। उस बगीचे में मेरे भी बहुत सारे पेड़ हुआ करते थे। एकबार हमारे दादाजी ने आम के मौसम में आमों की रखवारी का जिम्मा गाँव के ही एक व्यक्ति को दे दी थी। लेकिन कहीं से दादाजी को पता चला कि वह रखवार ही रात को एक-दो लोगों के साथ मिलकर आम तोड़ लेता है। एक दिन हमारे दादाजी ने धुक्का छिपकर सही और गलत का पता लगाना) लगने की सोची। रात को खा-पीकर एक लऊर लाठी और बैटरी टार्च लेकर हमारे दादाजी उस भयानक और भूतों के साम्राज्यवाले बगीचे में पहुँचे। उनको कोन्हवा कोनेवाला पेड़ के नीचे एक व्यक्ति दिखाई दिया। दादाजी को लगा कि यही वह व्यक्ति है जो आम तोड़ लेता है। दादाजी ने आव देखा न ताव; और उस व्यक्ति को पकड़ने के लिए लगे दौड़ने। वह व्यक्ति लगा भागने। दादाजी उसे दौड़ा रहे थे और चिल्ला रहे थे कि आज तुमको पकड़कर ही रहुँगा। भाग; देखता हूँ कि कितना भागता है। अचानक वह व्यक्ति उस बारी में ही स्थित एक बर के पेड़ के पास पहुँचकर भयंकर और विकराल रूप में आ गया। उसके अगल-बगल में आग उठने लगी। अब तो हमारे दादाजी  काफी बूढ़ा   हो गए और बुद्धि ने काम करना बंद कर दिया) । उनका शरीर काँपने लगा, रोएँ खड़े हो गए और वे एकदम अवाक हो गए। अब उनकी हिम्मत जवाब देते जा रही थी और उनके पैर ना आगे जा रहे थे ना पीछे। लगभग दो-तीन मिनट तक बेसुध खड़ा रहने के बाद थोड़ी-सी हिम्मत करके हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए वे धीरे-धीरे पीछे हटने लगे। जब वे घर पहुँचे तो उनके शरीर से आग निकल रही थी। वे बहुत ही सहमे हुए थे। तीन-चार दिन बिस्तर पर पड़े रहे तब जाकर उनको आराम हुआ। उस साल हमारे दादाजी ने फिर अकेले उस बगीचे की ओर न जाने की कसम खा लीहैं  



                                                        जॅंगल की चुरैल की   कथा
ये कहानी सत्य घटना पर आधरित हैं !
माता जी  से सुनी हुई ये कहानी हमारे नाना जी के जीवन चक्र की एक घटना को दर्शाती हैं! 
एक दिन की बात हैं , ठंड का समय था घना कोहरा छाया था सारे लोग जल्दी  कार्यालय का काम ख़त्म करके घर की तरफ निकल रहे थे ! नाना जी उस समय के बड़े अधिकारियों मे से एक थे ! वे उस समय के उच्च वर्ग के लोगों मे एक अमीन का काम करते थे ! रोज की तरह ही उस दिन कम ख़त्म होने के बाद घर के लिए अपनी गाड़ी से रवाना होने लगे ! रास्‍ते में उन्हे हाट से कुछ समान भी लेना था तो वे और साथियों से अलग हो गये ! उन्होने घर की कुछ जरूरत के समान लिए और गाड़ी आगे बढ़ा दी !
आगे जाने पर उन्हे कुछ मछली बाज़ार दिखा और वे मछली खरीदने के लिए रुक गये ! ताज़ी मछलियाँ लेने और देखने मे टाइम ज़्यादा ही गुजर गया ! उनकी जब अपनी घड़ी पर नज़र गई तो उन्हे आभास हुआ की आज तो घर जाने मे बहुत देर हो जाएगी और ये सब लेकर घर पहुचने मे काफ़ी समय लग जाएगा ! फिर यही सब सोच कर उन्होने सोचा कि क्यू ना जंगल के रास्ते से निकला जाए तो जल्दी पहुँच जाउँगा ! तो उन्होने अपना रास्ता बदला और जंगल की तरफ़ अपनी गाड़ी को घुमा लिया !
समय ११  बज चुका  था  गाड़ी तेज रफ़्तार से आगे बढ़ रहां  था  तभी अचनाक तेज ब्रेक के साथ गाड़ी को रोकना पड़ा !
उनकी गाड़ी के आगे एक औरतज़ोर २ से रो रही थी!
उन्होने सोचा इस वीराने मे ये औरत क्या कर रही हैं उन्हे लगा की कोई मजदूर की पत्नी होगी जो नाराज़ होकर घर छोड कर जॅंगल मे भाग आई हैं तो उन्होने उससे पूछा की यहाँ जॅंगल मे तुम क्या कर रही हो? 
लकिन उसने कोई जवाब न देकर और ज़ोर २ से रोने लगी!
सारे जंगल मे उसकी हूँ हूँ  सी सिसकियाँ गूँज रही थी!
फिर नाना जी ने पूछा तुम्हारा घर कहाँ हैं?
लेकिन वो कुछ भी ना बोली!
तब नाना जी ने कहा की आज चलो मेरे घर मे रहना सुबह अपने घर चली जाना ये जॅंगल बहुत
सारे जंगली जानवर से भरा हे रात भर यहाँ मत रूको चलो आज मेरे घर मे सब के लिए खाना बना देना और कल सुबह अपने घर चली जाना ! उसने ये सुना तो झट से तैयार हो गई ! और गाड़ी मे पीछे की सीट पर बैठ गई!
सिर मे बड़ा सा घूँघट डालने की वजह से उसका चेहरा छिपा हुआ था ! कुछ  ही देर मे गाड़ी घर के दरवाजे पे थी! घर के लोग कब से उनकी राह देख रहे थे !
गाड़ी रुकते ही पापा  ने पूछा आज तो बहुत देर हो गई और सारे लोग आ भी चुके हैं ! तब उन्होने सारी बातें अपनी माँ को बताई और कहा की आज खाना इससे बनवा लो कल सुबह ये अपने घर चली जाएगी!
इतनी रात को बेचारी जंगल मे कहा भटकती ! इसलिए मैं ले आया ! 

पर पापा  को कुछ संदेह हो रहा था की कहीं चोर तो नहीं हे रात को सोने के बाद या खाना बनाते समय कहीं घर के सामान ही चुरा कर ना ले जाए! 
पर बेटे की बात को कैसे माना करती !
उन्होने उस औरत को कहा देखो आज तो मैं रख ले रही हूँ लेकिन कल सुबह होते ही यहाँ से चली जाना!
और जाओ रसोई मे ये समान उठा कर ले जाओ और खाना बना दो ! 
उसने फिर से जवाब नहीं दिया !
बस हूँ हूँ हूँ की   आवाज  बाहर आयी !

और वो सारा सामान लेकर माँ के पी छे  बहुत  दूर   चल दी!

रसोई मे सारा सामान रखवा कर माता  जी  ने उसे खाना जल्दी बनाने की सख्‍त हिदायत दी! 

और वहाँ से चली गई !
लेकिन उनका मन कुछ परेसान सा था ! 
फिर १०  मिनट मे रसोरे मे उसे देखने चली गई की वो क्या कर रही हे और उसका चेहर भी देखना चाहती थी!
लेकिन .....................................................................
वहाँ पहुची तो देखा की वो मछलियों का थैला निकल रही थी! 
उन्होने बहुत ज़ोर से गुस्से मे कहा यहाँ सब खाने का इंतजार कर रहे हे और तुम अभी तक मछलियाँ ही निकल रही हो कल सुबह तक बनाओगी क्या?
उसके सिर पर घूँघट अभी भी था तो चेहरा देखना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन  था !
उन्होने उससे कहा तुम जल्दी से खाने की तैयारी करो मैं आग सुलगा देती हूँ काम जल्दी हो जाएगा !
और वे जल्दी से चूल्हा जलाने की तैयारिया करने लगी !
लेकिन साथ ही वो उसका चेहरा देखने की भी कोशिश कर रही थी !
लेकिन वो जितना देखने की कोशिश करती वो और पल्लू खींच लेती! अंत मे हार कर वे बोली देखो मैने आग सुलगा दी हैं अब आगे सारा काम कर लो !
कुछ ज़रूरत हो तो बुला लेना ! लेकिन वो फिर कुछ नहीं बोली ! अब उन्हें लगा की यहाँ से जाने मे ही ठीक हैं ! वरना मेरा भी समय खराब होगा और हो सकता हैं अंजान लोगों से डर रही हो ! 
ये सब सोच कर उन्होंने उसे कहा की मैं आ रही हूँ जल्दी से खाना बना कर रखना ! 
और वहाँ से निकल गई !
मन अभी तक परेसांन ही था !
कभी अपने कमरे कभी बच्चों के कभी बाहर सब को देख रही थी, कहीं कुछ अनहोनी ना हो जाए!
एक मिनट भी आराम से नहीं बैठ पाई !
अभी पाँच मिनट ही हुए थे पर उनके लिए वो घड़ी पहाड़ सी हो रही थी !
समय बीत ही नहीं रहा था ! 
आठ मिनट बड़ी मुश्किल से गुज़रे और वे तुरंत ही कुछ सोच कर रसोरे की तरफ दौड़ी !

और वहाँ पहुँच कर आया

जैसे ही उन्होने रसोई घर का नज़ारा देखा , उनकी आँखे फटी की फटी रह गई ! उनके पैर बिल्कुल ही जम गये ना उनसे आगे जाया जा रहा था ना ही पीछे ! 

उनके हृदय की धडकने रुक रही थी ! 

वो औरत रसोरे मे बैठ कर सारी कच्ची मछलिया खा रही थी !
सारे रसोरे में मछलियाँ और खून बिखरा पड़ा था !

उसके सिर से घूँघट भी उतरा पड़ा था !
इतना खौफनाक चेहरा आज तक उन्होने नहीं देखा था !
बाल, नाख़ून सब बढ़े हुए थे ! 

मछलियाँ खाने मे मगन होने की वजह से उसे कुछ ध्यान भी नहीं था !
और खुशी से कभी २ वो आवाज़े भी निकल रही थी !

हूँ हूँ सी आवाज़े गूँज रही थी ! 

रसोरा पिछवारे मे होने की वजह से और लोगों का ध्यान भी इधर नही आ रहा था !
माँ को भी कुछ नहीं समझ आ रहा था , कि चिल्लाने से कहीं घर के लोगों को नुकसान ना पहुचाए !

वो चुड़ैल से अपने घर को कैसे बचाए उन्हे समझ नहीं आ रहा था !
बस भगवान का नाम ही उनके दिमाग़ मे आ रहा था !
अचानक वे आगे बढ़ने लगी उसकी तरफ !

और झट से एक थाल लिया और चूल्‍हे की तरफ दौड़ी ! उस चुरैल  की नज़र भी पापा  पर पड़ चुकी थी सो वो भी कुछ सोच कर उठी अपनी जगह से !

माँ कुछ भी देर नहीं करना चाहती थी , उन्हे पता था की आज अगर ज़रा सी भी लापरवाही हुई तो अनहोनी हो जाएगी !
उस चुरैल के कुछ करने से पहले ही उन्हे चूल्‍हे तक पहुचना था !
और चूल्‍हे के पास पहुँच कर उन्होने जलता हुआ कोयला थाल मे भर लिया !
और चुड़ैल की तरफ लेकर जोर से फेंका ! 

आग की जलन की वजह से वो अजीब सी डरावनी आवाज़े निकालने लगी !

अब तो उसकी आवाज़े बाहर भी जा रही थी सारे लोग बाहरसे रसोरे की तरफ भागे !

वो चुड़ैल ज़ोर  से हूँ हूँ  जोर  की आवाज़ निकल रही थी और पूरे रसोरे मे दौड़ रही थी और माता जी  को पकड़ना भी चाह रही थी !
लेकिन अब सारे लग रसोरे मे आ चुके थे काफी  लोगों की भीड़ देख कर वो और भी डर गयी  थी ! 

लोंगों की भीड़ को थेलती हुई वो बाहर जॅंगल की तरफ भाग गये  

और सारे लोग ये मंज़र देख कर डरे साहमे से खड़े थे ! और मन हीं मन माता जी   की हिम्मत की दाद दे रहे थे  
तो ऐसे छूटा चुरैल से पीछा !  Amar sharma